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अतीत नहीं होती नदी | Ateet Nahin Hoti Nadi
दामोदर खड़से अपनी कविता 'अतीत नहीं होती नदी' में न सिर्फ एक नदी के सौंदर्य को दर्शाते हैं, बल्कि मनुष्य के लिए उसकी प्रासंगिकता के कई पहलू भी हमारे सामने रखते हैं। ...
पृथ्वी का मंगल हो | Prithvi Ka Mangal Ho
करोना लॉकडाउन के दिनों में लिखी गई अशोक वाजपेयी की यह कविता, पृथ्वी और उसके बाशिंदों के लिए एक प्रार्थना तो है ही, पर साथ ही प्रकृति पर मनुष्य की गहरी निर्भरता का एक अ...
धरती के इस हिस्से में | Dharti Ke Is Hisse Mein
राजेश जोशी की कविता 'धरती के इस हिस्से में', एक समुद्र तट का चित्रण करती है - जहाँ चिड़ियों, लहरों, मछलियों और पेड़ों की कई आवाजों के बीच भी एक गहरा एकांत है। साथ ही य...
अमरफल | Amarphal
अरुण कमल अपनी कविता अमरफल में एक खास तरह के फल की तलाश में हैं। जो ना सिर्फ उनके बचपन की स्मृतियों से जुड़ा है, बल्कि जो अपनी ही परिपक्वता के उल्लास से फट पड़ा है। एक ऐस...
आरा मशीन | Aaraa Machine
जिस आरा मशीन की बात विश्वनाथ प्रसाद तिवारी अपनी कविता में करते हैं, वह ना सिर्फ कुछ पेड़ों को काटती है, बल्कि मनुष्य और प्रकृति के गहरे रिश्ते पर भी आघात करती है। ऐसे म...
पानी क्या कर रहा है | Paani Kya Kar Raha Hein
इस कविता में नरेश सक्सेना हमें याद दिलाते हैं कि प्रकृति कोई मृत पदार्थ नहीं बल्कि एक जीता जागता पारितंत्र है, जिसका हर तत्व उसे संतुलन में रखने के लिए अपना पूरा कर्तव...
Season 2 Trailer
इस पॉडकास्ट शृंखला में हम मिलेंग हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवियों से, सुनेंगे उनकी कविताएँ, और जानेंगे उन कविताओं के पीछे की कहानियाँ।
मिट्टी का मूल्य | Mitti Ka Moolya
इस बाल कविता में गुलज़ार साहब को अपने बाग की मिट्टी किसी जादूगर की तरह लगती है - जो रंग, रूप और स्वाद की अनेक तरकीबों से उन्हें अक्सर विस्मय में डाल देती है। In th...
छत पर बारिश | Chhat Par Baarish
नेमिचन्द्र जैन की इस कविता में उस अद्भुत दृश्य का चित्रण है, जब बरसात के बाद लोग अपनी छतों पर निकल आते हैं, और कुछ देर के लिए अपनी सारी परेशानियों को भूल कर प्रकृति के...
शहर में खोया जंगल | Sheher Mein Khoya Jungle
'सतपुड़ा के जंगल' एक निमंत्रण है, उन जंगलों में प्रवेश करने का, जिन्हें हम दुर्गम और डरावना मान कर अक्सर उपेक्षित कर देते हैं। भवानीप्रसाद मिश्र की मानें तो यही जंगल हम...
फूलों की महक | Phoolon Ki Mehek
इस कविता में नीम के फूलों की महक कुँवर नारायण को कभी अपनी माँ, कभी अपने पिता, कभी अपने बचपन तो कभी अपनी पूरी संस्कृति की याद दिलाती है - वह संस्कृति जहां मानवता और प्...
झरने की आवाज़ | Jharne Ki Aawaaz
विनोद कुमार शक्ल की कविता 'जलप्रपात है समीप' हमें एक झरने के पास ला कर खड़ा कर देती है। वो हमें मजबूर करती है के हम उसकी आवाज़ को गौर से सुनें - और उस एक आवाज़ में छुपी ...
पहाड़ों से बातें | Pahaadon Se Baatein
गुलज़ार को शब्दों का चित्रकार माना जाता है। उनकी कविता 'थिंपू-भूटान' में एक पहाड़ हमसे इस तरह मुख़ातिब होता है, मानो हमारे परिवार का ही कोई बुज़ुर्ग हो - जो मानव जीवन की ...
नदियाँ | Nadiyaan
केदारनाथ सिंह की कविता ‘नदियाँ’ एक नदी की तरह ही बहती है। वह हमें कई परिदृश्य दिखाती है, कई ऐसे मोड़ लेती है जो हमें चकित कर छोड़ते हैं, और अंततः जब उसके निर्मल जल में ह...
पेड़ जो हमारे पड़ोसी हैं | Ped Jo Humaare Padosi Hain
कुँवर नारायण अपनी कविताओं में अक्सर पेड़ों से बातें करते थे। उनकी कविता 'मेरा घनिष्ठ पड़ोसी' हमें एक ऐसे पेड़ से मिलवाती है जो न सिर्फ उनका पुराना पड़ोसी है बल्कि उनके सुख...
Trailer
यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। ...